मौत आई थोड़ा-सा चखकर चली गई नींद आई थोड़े सपने रखकर चली गई खुशी आई थोड़ी-सी दिखकर चली गई शाम आई अवसाद से भर रीत गई सुबह आई फिर कुछ लिखकर चली गई सब आए पर पूरी तरह नहीं जैसे अधूरा होना सब की नियति हो
हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ